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"स्त्री जन्म नहीं लेती" ***************** एक गर्भ

"स्त्री जन्म नहीं लेती"
*****************
एक गर्भ से जन्मे दोनों ही,फिर क्यों समाज में दोनों के प्रति भाव भिन्न-भिन्न दर्शाया जाता है?
कर भेद दोनों में क्यों एक के अस्तित्व को तुच्छ, दूजे के व्यक्तित्व को क्यों श्रेष्ठ जताया जाता है?
हाँ माना भिन्न है व्यक्तिव दोनों का,पर व्यक्तित्व की भिन्नता को अस्तित्व की असमानता क्यों बनाया जाता है?
भिन्न भिन्न परिवेश दे,क्यों दोनों के हृदय में एकदूजे के प्रति द्वेष हीनता को निरंतर बढ़ाया जाता है?

समाज में सदा ही विसरा कर भूल पुरूषों की, क्यों उन्हें  सदा  ही धर्मराज बनाया जाता है?
खड़ा कर प्रश्नों के कटघरे में,क्यों स्त्री को विनाशकारी महाभारत का कारण बताया जाता है
गर्भवती वनिता को भेजकर वनवास भी, क्यों समाज में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया जाता है?
क्यों ली जाती है अग्निपरीक्षा वैदेही की, क्यों भरी सभा में उनके चरित्र पर प्रश्न उठाया जाता है?

अनदेखा कर स्त्री की क्षमताओं को,क्यों ढोल, गँवार,शूद्र,पशु की तुला में मापा जाता है?
जब दोनों ही है हिस्सा समाज का,फिर क्यों सिर्फ स्त्री को ही सीमाओं के चादर से ढाँका जाता है? 
पुरुषत्व का वर्चस्व दिखा ,क्यों समाज में स्त्री के अस्तित्व को सदा ही झुठलाया जाता है?
हाँ माना है वो स्त्री, पर क्यों हमेशा उसे बात बात पर तुम स्त्री हो, याद दिलाया जाता है?

क्यों भूल जाते हो वह भी है एक अबोध बालक ही,जिसे जन्म से ही स्त्रीत्व समझाया जाता है!
जन्म से होती है वह भी स्वच्छंद ही,सामाजिक बंधनों में बंँधकर रहना जिसे सिखाया जाता है!
छुपाकर निज वेदना औरों हेतु निज इच्छाएँ और ख्वाबों का त्याग जिसे प्रेम बताया जाता है!
मौन रहकर सहने के दे संस्कार,स्वयं को भूल त्याग प्रेम सेवा है धर्म स्त्री का उसे पढ़ाया जाता है!

आँखों में रहे हया हृदय में प्रेम, त्याग और मर्यादा का ये पाठ उसे बचपन से ही कंठस्थ कराया जाता है!
मान मर्यादा की पोटली रख काँधों पर उसके , उसे जिम्मेदार और सहनशील बनाया जाता है!
अंगारों पर चलाकर कदम कदम पर ले परीक्षा उसकी,वह स्त्री है हर बात में समझाया जाता है!
स्त्री जन्म नहीं लेती है जनाब, जन्म होता है एक अबोध बालिका का जन्मोपरांत जिसे स्त्री बनाया जाता है!

सरल सहज सौम्य प्रेममयी अन्नपूर्णा लक्ष्मी सरस्वती स्वरूपा स्त्री,सृजन औ सृष्टि का जिसे आधार बताया जाता है!
न होती है कभी विनाश का कारण स्त्री ,कर हरण सम्मान  और स्वाभिमान उसका उसे दुर्गा काली बनाया जाता है!
भूल निज अस्तित्व को निखारती व्यक्तित्व समाज का,प्रेम से जिसके ईंटो के मकान को घर बनाया जाता है!
स्त्री जन्म नहीं लेती है जनाब, जन्म होता है एक अबोध बालिका का जन्मोपरांत जिसे स्त्री बनाया जाता है!

_जागृति@**शर्मा.."अजनबी"✍️

©jagriti sharma` #अजनबी_जागृति
#उद्वेलित_हृदय
#स्त्री_जन्म_नहीं_लेती
#Poetry 
#Hindi #hindi_poetry
"स्त्री जन्म नहीं लेती"
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एक गर्भ से जन्मे दोनों ही,फिर क्यों समाज में दोनों के प्रति भाव भिन्न-भिन्न दर्शाया जाता है?
कर भेद दोनों में क्यों एक के अस्तित्व को तुच्छ, दूजे के व्यक्तित्व को क्यों श्रेष्ठ जताया जाता है?
हाँ माना भिन्न है व्यक्तिव दोनों का,पर व्यक्तित्व की भिन्नता को अस्तित्व की असमानता क्यों बनाया जाता है?
भिन्न भिन्न परिवेश दे,क्यों दोनों के हृदय में एकदूजे के प्रति द्वेष हीनता को निरंतर बढ़ाया जाता है?

समाज में सदा ही विसरा कर भूल पुरूषों की, क्यों उन्हें  सदा  ही धर्मराज बनाया जाता है?
खड़ा कर प्रश्नों के कटघरे में,क्यों स्त्री को विनाशकारी महाभारत का कारण बताया जाता है
गर्भवती वनिता को भेजकर वनवास भी, क्यों समाज में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया जाता है?
क्यों ली जाती है अग्निपरीक्षा वैदेही की, क्यों भरी सभा में उनके चरित्र पर प्रश्न उठाया जाता है?

अनदेखा कर स्त्री की क्षमताओं को,क्यों ढोल, गँवार,शूद्र,पशु की तुला में मापा जाता है?
जब दोनों ही है हिस्सा समाज का,फिर क्यों सिर्फ स्त्री को ही सीमाओं के चादर से ढाँका जाता है? 
पुरुषत्व का वर्चस्व दिखा ,क्यों समाज में स्त्री के अस्तित्व को सदा ही झुठलाया जाता है?
हाँ माना है वो स्त्री, पर क्यों हमेशा उसे बात बात पर तुम स्त्री हो, याद दिलाया जाता है?

क्यों भूल जाते हो वह भी है एक अबोध बालक ही,जिसे जन्म से ही स्त्रीत्व समझाया जाता है!
जन्म से होती है वह भी स्वच्छंद ही,सामाजिक बंधनों में बंँधकर रहना जिसे सिखाया जाता है!
छुपाकर निज वेदना औरों हेतु निज इच्छाएँ और ख्वाबों का त्याग जिसे प्रेम बताया जाता है!
मौन रहकर सहने के दे संस्कार,स्वयं को भूल त्याग प्रेम सेवा है धर्म स्त्री का उसे पढ़ाया जाता है!

आँखों में रहे हया हृदय में प्रेम, त्याग और मर्यादा का ये पाठ उसे बचपन से ही कंठस्थ कराया जाता है!
मान मर्यादा की पोटली रख काँधों पर उसके , उसे जिम्मेदार और सहनशील बनाया जाता है!
अंगारों पर चलाकर कदम कदम पर ले परीक्षा उसकी,वह स्त्री है हर बात में समझाया जाता है!
स्त्री जन्म नहीं लेती है जनाब, जन्म होता है एक अबोध बालिका का जन्मोपरांत जिसे स्त्री बनाया जाता है!

सरल सहज सौम्य प्रेममयी अन्नपूर्णा लक्ष्मी सरस्वती स्वरूपा स्त्री,सृजन औ सृष्टि का जिसे आधार बताया जाता है!
न होती है कभी विनाश का कारण स्त्री ,कर हरण सम्मान  और स्वाभिमान उसका उसे दुर्गा काली बनाया जाता है!
भूल निज अस्तित्व को निखारती व्यक्तित्व समाज का,प्रेम से जिसके ईंटो के मकान को घर बनाया जाता है!
स्त्री जन्म नहीं लेती है जनाब, जन्म होता है एक अबोध बालिका का जन्मोपरांत जिसे स्त्री बनाया जाता है!

_जागृति@**शर्मा.."अजनबी"✍️

©jagriti sharma` #अजनबी_जागृति
#उद्वेलित_हृदय
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