पार्ट 2 👇 हार है ,निराशा है! यह जीवन समर भूमि के रंगमंच के जैसा; मैं फसा उसमें अभिमन्यु के जैसा, कदम - कदम पर अपमानित कर्ण के जैसा, अब और नहीं मुझसे सहा है जाता। नहीं सामर्थ्य पग अब और एक बढ़ाने का! कर थाम लो, हे! देव दयामय वसुधा पे खड़ा मैं अकेला कर थाम लो हे! देव दयामय वसुधा पे खड़ा मैं अकेला। अभिषेक सिंह...... ©Writer Abhishek Anand 96 #Save पार्ट 2 - तब दोनों हाथ फैलाना