दिल से दिल मिल जाता है जब ये करम करती हूँ। तुम्हारी बाहों में मैं सारी दुनिया का सफ़र करती हूँ, सुकूँ-ए-हयात का एहसास बाहों के उस पार होता है, मैं हारी हुई एक युग की इश्क़-ए-ज़फ़र करती हूँ। बाहों के दरमियाँ वक़्त कटता हवा की रफ़्तार सा, ख़ुद की ख़बर नहीं होती पर तेरी हर ख़बर रखती हूँ। तुम्हारी बाहों को ही अब मैंने घर अपना बनाया है, हर इबादत में तेरी सलामती-ओ-फ़कर रखती हूँ। है आसमां के जैसे चाँद तारे, हम भी वैसे ही हैं तुम्हारें, बाहों के घेरे में मैं रहती हूँ सनम तेरी डगर चलती हूँ।— % & ♥️ Challenge-842 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ Happy Hug Day ♥️ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।