रूह भी तलबगारों सी ,उल्फ़त के आशियाने में बेचैन और बेख़बर , है झूमती मयख़ाने में फानूस कोई मोम सी ,जल रही,पिघल रही धुआँ मगर क़ैद है , डगमगाती पैमानें में #पारस #मयख़ाने #तलबगार #रूह