श्मशान ========= श्मशान ही बना दिया तुमने तो मेरे दिल को... जिसमें मेरे सारे सपने जलकर राख का ढ़ेर हो गये... कैसे इसे मै समेटूँ.... ये तो बिखर-बिखर जा रहें हैं मेरे हाथों से.... जलकर एक -एक सपनें कह रहे हैं मुझसे..... हम तो बनते ही बिखरने के लिए हैं... इसलिए बंद आँखों मे ही आते हैं और चले जाते हैं.. क्यों ए-पगली तुने हमें खुली आँखों से देखा.... ये ले,,, हम तो रोज एक महोब्बत का जनाजा लेकर निकलते हैं,,, तेरे दिल को ही आज श्मशान बना दिया,, ये कोई ओर नहीं... तेरा अपना ही हैं.... | गीता शर्मा प्रणय श्मशान