ग़जल हर रोज एक बेवफा के यादो में रोया करता हूँ। अपने ही अश्कों से अपन जख्म धोया करता हूँ। वह तो मखमल के विस्तर पर सो जाया करती है, मै रोज उसके यादो की अर्थी पर सोया करता हूँ। अब तो ये नींद भी परायी सी हो गयी है मेरी, मै अब तो रातो को भी तन्हा तन्हा खोया रहता हूँ। जो कर गयी बेवफाई मुझसे अपने खुशी के लिये, फिर भी क्यो उसी के लिये दुआ का बिज बोया करता हूँ। जीसने भुला दी कृष्ण अपने दिल से मुझे समय कि तरह, फिरभी क्यो उसी की तसवीर दिल में सजोया करता हूँ। कवि:-कृष्ण मंडल #ग़जल हर रोज एक बेवफा के यादो में रोया करता हूँ। अपने ही अश्कों से अपन जख्म धोया करता हूँ। वह तो मखमल के विस्तर पर सो जाया करती है, मै रोज उसके यादो की अर्थी पर सोया करता हूँ। अब तो ये नींद भी परायी सी हो गयी है मेरी, मै अब तो रातो को भी तन्हा तन्हा खोया रहता हूँ।