देख राहों में कितनी शोर हैं, हर राह में नाचने वाली मोर हैं, फिर अचानक से सन्नाटा ये कैसी छायी , जैसे बिन सुबह ही रात हैं करीब आयीं, ये रास्ते सूनी - सूनी है, आतें- जातें लोग हैं बहुत! सब अनजानी हैं, आज फिर वही हूँ खड़ी, जिस राह में, मैं पहली दफा मिलीं, ये तड़पाती गर्मी जला रहीं हैं, फिर ठंडी हवा पसीने सूखा रहीं हैं, तितली उड़ते - उड़ते फूलों में जा बैठ रहीं , ये नजारा प्रकृति की सुदंरता की याद दिला रहीं। Manorama Shaw✍ ©My Poetry and learning Lovers #NatureBeauty #manoramaShaw #mypoetryandlearningLovers 🍸