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कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से

कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।

-PRANAV कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।वह कहानी जिसमें दो अंजान लोग जिनकी ख्वाहिशें, जिनके मुकाम, जिनके अनुभव, जिनका सफ़र बिल्कुल अलग था, एक चौराहे पे मिले और सबकुछ ठहर सा गया। ज़िन्दगी मन्द हो गई, हवाएँ रुक सी गईं। पर वो कहते हैं ना, प्रकृति को ठहराव पसन्द नहीं है और बिना प्रकॄति की मर्ज़ी के एक कण भी हिल नहीं सकता। अतः इस कहानी के अधूरेपन में ही इसकी सम्पूर्णता है।

इस कह
कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।

-PRANAV कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।वह कहानी जिसमें दो अंजान लोग जिनकी ख्वाहिशें, जिनके मुकाम, जिनके अनुभव, जिनका सफ़र बिल्कुल अलग था, एक चौराहे पे मिले और सबकुछ ठहर सा गया। ज़िन्दगी मन्द हो गई, हवाएँ रुक सी गईं। पर वो कहते हैं ना, प्रकृति को ठहराव पसन्द नहीं है और बिना प्रकॄति की मर्ज़ी के एक कण भी हिल नहीं सकता। अतः इस कहानी के अधूरेपन में ही इसकी सम्पूर्णता है।

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