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White कमरे का कोना-कोना, नापते रहते हैं चलते फिरत

White कमरे का कोना-कोना, नापते रहते हैं 
चलते फिरते रहते हैं, हांफते रहते हैं
कश्ती पर न साहिल पर होता हमें भरोसा 
दिल दरिया है गहरा हम, हिसाब से रहते हैं
उलझन में ही मस्त हुए होड़ लगी कुछ करने की 
पागल कुत्ता हुई है ख़्वाहिश, भागते रहते हैं।
किनारे नहीं, आँखें हैं गमखोर बड़ी 
इसी बात की लगी फिकर, क्यूं जागते रहते हैं
तिरछा टेढ़ा आँगन है, गिरना लगा ही रहता है 
कोई मदारी अंदर है, ग़म नाचते रहते हैं

©Ruchi ki kalam se उलझन
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