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क्या कर रहे हो आजकल ? पढ़ाई कब तक पूरी होगी ? अभी

क्या कर रहे हो आजकल ? पढ़ाई कब तक पूरी होगी ? अभी जो बनना चाहते हैं 
, कितना समय और लग जायेगा ? ऐसे कई सवाल प्रतियोगी जीवन के यक्ष प्रश्न होते हैं । 

आम लोगों के लिए सफलता के शीर्षक के अभाव में संघर्ष की हर कहानी संवेदना 
का संदर्भ मात्र बनकर रह जाती है । प्रतियोगी जीवन की हर ऋतु ग्रीष्म होती है । 
सर्द और रोमांचकारी मौसम भी विचार और तथ्यों की उधेड़बुन में बेजान से हो 
जाते हैं । इतिहास की संवेदनाओं को समझते - समझते स्वयं का जीवन दस्तावेज 
हो जाता है । कई बार तो भूगोल की आपदाओं की भूमि खुद की
 जिदंगी महसूस होने लगती है । 

राजव्यवस्था के अनुच्छेदों से अधिक सवाल समाज में उठते हैं। विज्ञान के क्रमबद्ध 
ज्ञान को आत्मसात करने के क्रम में जीवन के कई चरण छूट जाते हैं । समसामयिक
 घटनाओं पर दृष्टि इतनी सूक्ष्म और केंद्रित होती है कि खुद से खुद की मुलाकात 
हुए अरसे हो जाता है । अंतर्राष्ट्रीय संबधों के तार सुलझाते विभिन्न निजी
 संबंधों की डोर कमजोर पड़ जाती है । 

फिर भी यह सवाल कितना हास्यास्पद है कि आजकल करते क्या हो ?
 ऐसा कुछ नहीं करते जिससे किसी को पीड़ा हो , ऐसा भी कुछ नहीं करते
 जो सृजन के विपरीत हो । हैसियत की दुनिया में भी खैरियत सबसे जरूरी है ।

खैर बात बस इतनी सी है कि जीवन की गरिमा देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त
 है , और उसका सम्मान करना भी सामूहिक दायित्व है ।

©पूर्वार्थ #STUDY_TABLE 
#विद्यार्थी
#विद्यार्थी_जीवन
क्या कर रहे हो आजकल ? पढ़ाई कब तक पूरी होगी ? अभी जो बनना चाहते हैं 
, कितना समय और लग जायेगा ? ऐसे कई सवाल प्रतियोगी जीवन के यक्ष प्रश्न होते हैं । 

आम लोगों के लिए सफलता के शीर्षक के अभाव में संघर्ष की हर कहानी संवेदना 
का संदर्भ मात्र बनकर रह जाती है । प्रतियोगी जीवन की हर ऋतु ग्रीष्म होती है । 
सर्द और रोमांचकारी मौसम भी विचार और तथ्यों की उधेड़बुन में बेजान से हो 
जाते हैं । इतिहास की संवेदनाओं को समझते - समझते स्वयं का जीवन दस्तावेज 
हो जाता है । कई बार तो भूगोल की आपदाओं की भूमि खुद की
 जिदंगी महसूस होने लगती है । 

राजव्यवस्था के अनुच्छेदों से अधिक सवाल समाज में उठते हैं। विज्ञान के क्रमबद्ध 
ज्ञान को आत्मसात करने के क्रम में जीवन के कई चरण छूट जाते हैं । समसामयिक
 घटनाओं पर दृष्टि इतनी सूक्ष्म और केंद्रित होती है कि खुद से खुद की मुलाकात 
हुए अरसे हो जाता है । अंतर्राष्ट्रीय संबधों के तार सुलझाते विभिन्न निजी
 संबंधों की डोर कमजोर पड़ जाती है । 

फिर भी यह सवाल कितना हास्यास्पद है कि आजकल करते क्या हो ?
 ऐसा कुछ नहीं करते जिससे किसी को पीड़ा हो , ऐसा भी कुछ नहीं करते
 जो सृजन के विपरीत हो । हैसियत की दुनिया में भी खैरियत सबसे जरूरी है ।

खैर बात बस इतनी सी है कि जीवन की गरिमा देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त
 है , और उसका सम्मान करना भी सामूहिक दायित्व है ।

©पूर्वार्थ #STUDY_TABLE 
#विद्यार्थी
#विद्यार्थी_जीवन