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मुस्कुराने का सबब न पूछो हमसे मुस्कुराते ही आंखों

मुस्कुराने का सबब न पूछो हमसे 
मुस्कुराते ही आंखों से आंसू आ जाते हैं 
उसने बिछा रखा है फूल मेरी हर रहगुजर में 
फिर न जाने मेरे पैरों में छाले पड़ जाते हैं 

ख्वाहिश अब नही है किसी शय की एक तुम्हे पाने के बाद 
पता नहीं तुमको मेरे दिल की हर बात कैसे समझ आते हैं 
मेरी मुहब्बत ऐसे ही बरकरार रहे भले तुझसे कह न सकूं 
जुबां के अनकहे जज़्बात मेरे लिखे अल्फाज तुमसे कह जाते हैं 

नादानियों के समंदर में डगमगाई थी एक पल को मुहब्बत की कश्ती 
मांझी तुम थी हमारी इसलिए हम डूबते डूबते संभल जाते हैं 
देखे हैं बुरे दौर में हमने अपनों को गिरगिट सा रंग बदलते हुए 
हाथ में हाथ लिए साथ थे तुम इसलिए हालत संभल जाते हैं

©Krishna Tripathi
  #Sunhera

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