कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे; ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे; नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब; और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे; ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक; साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे; एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए; एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे; ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग; तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे। #तुम बुझाना #मत जो #कोई दूसरा #रौशन #करे..