Title : इधर भी, उधर भी। दो आँखे जगे इधर, दो पाँव चल रहे उधर, खयालो के सफ़र इधर भी, ख्याल ही ख्याल उधर भी, हा... वजह एक सी, हा... बात एक ही, पर नज़रिया अलग... इधर भी, उधर भी... सोच यहां, क्या वहां, अहसास वो जन्म ले रहे? डर वहां, क्या हो रहा, आजकी ख़ुशी कहि कल का ना दर्द दे... ये रोक न पाए खुदको, उसी मज़िल पर मुड़ जाने से, वो बाँधे जज़्बात खुदके, उसी मंजिल पर जाने से, के यह मंज़िल नहीं मेरी, यह मंज़िल नहीं मेरी... ये चाँद खुद, मगर... जाने बिन धरती, बेवजह सा, वो धरती, जाने मिटटी खुद... कैसे सपना देखे चाँद का? दो आँखे जग रही इधर भी, दो पाँव टहल रहे उधर भी, हा... लम्बी रात यहां, हा... ठहरा वक्त वहां, और सुलग रहा "दिल"... इधर भी, उधर भी। ©Darshini Shah इधर भी, उधर भी। By #Darshini_Shah #Nojoto #Quotes #your #Quote #Shayari #share #Like #Love #NationalSimplicityDay