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देह अति आवश्यक है किंतु यह गंतव्य नहीं माध्यम है

देह अति आवश्यक है 
किंतु यह गंतव्य नहीं 
माध्यम है

दुख होता है जब हम 
दैहिक विलासिता अर्जित कर , भोग कर स्वयं पर इठलाते हैं

हमें लगता है हमनें उसे अर्जित किया, भोगा! 
सत्य ये है की विलासिता ने हमें अर्जित कर लिया,
 बिना कोई मोल चुकाये, हमें अपना दास बनाया

हमें तप योग्य नहीं रहने दिया
हमसे सहनशीलता छीन ली
प्रतिक्षा का गुण गौण कर दिया

जब हम दो कदम नंगे पाँव नहीं चल पाते
चप्पल हंसती है हमपर

जब हम एक घंटे की भूख नहीं सह पाते, तो देह 
अपनी गिरती संभावनाओं पर रोती है

जब हमें गौ माता के गोबर से अपनी मौलिकता 
का एहसास होने के बजाए, बदबू आती है, तो धरती हमें 
अपनी गोद में पालती नहीं है, बल्कि हमारा बोझ सहन करती है

मनुष्य असीम संभावनाओं का स्वामी है, लेकिन एक 
ऐसा स्वामी जिसे अपनी ही निधि का पता नहीं या पड़ी नहीं

कामनाएं, वासनाएं, इक्षाएं, विलासिता ये सब जीवन 
के महत्वपूर्ण अंग हैं किंतु जीवन नहीं? 

जीवन एक वृहद संकल्पना है। 

जब हमारे जीवन का लक्ष्य देह को सुख के साधन 
उपलब्ध कराना बन जाता है, तो हमें नश्वर सुख की 
अनुभूति तो अवश्य हो सकती है, किंतु इसमें शाश्वत 
मन का हर्ष, आत्मा की तृप्तता संभव नहीं।

©purvarth #देह
देह अति आवश्यक है 
किंतु यह गंतव्य नहीं 
माध्यम है

दुख होता है जब हम 
दैहिक विलासिता अर्जित कर , भोग कर स्वयं पर इठलाते हैं

हमें लगता है हमनें उसे अर्जित किया, भोगा! 
सत्य ये है की विलासिता ने हमें अर्जित कर लिया,
 बिना कोई मोल चुकाये, हमें अपना दास बनाया

हमें तप योग्य नहीं रहने दिया
हमसे सहनशीलता छीन ली
प्रतिक्षा का गुण गौण कर दिया

जब हम दो कदम नंगे पाँव नहीं चल पाते
चप्पल हंसती है हमपर

जब हम एक घंटे की भूख नहीं सह पाते, तो देह 
अपनी गिरती संभावनाओं पर रोती है

जब हमें गौ माता के गोबर से अपनी मौलिकता 
का एहसास होने के बजाए, बदबू आती है, तो धरती हमें 
अपनी गोद में पालती नहीं है, बल्कि हमारा बोझ सहन करती है

मनुष्य असीम संभावनाओं का स्वामी है, लेकिन एक 
ऐसा स्वामी जिसे अपनी ही निधि का पता नहीं या पड़ी नहीं

कामनाएं, वासनाएं, इक्षाएं, विलासिता ये सब जीवन 
के महत्वपूर्ण अंग हैं किंतु जीवन नहीं? 

जीवन एक वृहद संकल्पना है। 

जब हमारे जीवन का लक्ष्य देह को सुख के साधन 
उपलब्ध कराना बन जाता है, तो हमें नश्वर सुख की 
अनुभूति तो अवश्य हो सकती है, किंतु इसमें शाश्वत 
मन का हर्ष, आत्मा की तृप्तता संभव नहीं।

©purvarth #देह