चलो मैं आज तुम्हें खुद से रूबरू कराती हू। ज्यादा दूर जाने की जरू रत नही यही सब बताती हू। मुझे मेरे नाम से ज्यादा स्त्री नाम से जाना जाता है। कभी माँ, कभी बेटी इन रूपो से दर्शाया जाता है। संघर्षों से भरी मेरी नियति है यही सिखाय जाता है। चुप रहो, सहन करो यही सब बताया जाता है। पूजने को तो मैं आज भी देवी मानी जाती हू। लेकिन अपने ही घर मे सम्मान पाने के लिए तरस जाती हूं। कभी सीता, कभी मीरा, कभी जगत जननी कहलाती हू। लेकिन कलयुग मे अपनो द्वारा ही नोच ली जाती हूं। ममता, त्याग और करुणा की मूरत कहलाती हु। और इन्ही के कारण अपना सर्ववस्व भूल जाती हूं। # रूबरु