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वो कहती है तुम समझते नहीं हो उठी हमारे रिश्ते में

वो कहती है तुम समझते नहीं हो
उठी हमारे रिश्ते में दीवार बहुत है
मैं कहता हूँ उसको ज़रा गौर से देख
इन्ही दीवारों में पगली दरार बहुत है

लड़की जो लड़ती है बेशुमार मुझ से
मेरी हर बात पे उसे इनकार बहुत है
या तो मुझसे, उसको हैं नफरत बहुत
या फिर मुझ से उसको प्यार बहुत है 

वो कहती है रोकता है जग सारा
सब को इस प्यार से इंकार बहुत है
मैं कहता हूँ देखना सब हां कहेंगे
अभी व्रत के लिए सोमवार बहुत है 🎀 Challenge-208 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।
वो कहती है तुम समझते नहीं हो
उठी हमारे रिश्ते में दीवार बहुत है
मैं कहता हूँ उसको ज़रा गौर से देख
इन्ही दीवारों में पगली दरार बहुत है

लड़की जो लड़ती है बेशुमार मुझ से
मेरी हर बात पे उसे इनकार बहुत है
या तो मुझसे, उसको हैं नफरत बहुत
या फिर मुझ से उसको प्यार बहुत है 

वो कहती है रोकता है जग सारा
सब को इस प्यार से इंकार बहुत है
मैं कहता हूँ देखना सब हां कहेंगे
अभी व्रत के लिए सोमवार बहुत है 🎀 Challenge-208 #collabwithकोराकाग़ज़

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vishalvaid9376

Vishal Vaid

New Creator