ये जहां ना तेरा है ना मेरा है, वक़्त गुजरा, ना राते कटी, क्या सारा गुनाह मेरा है...? ना छाव हैं खुशी की, अब तो चारों ओर गम का साया है, छाले पड़े पावों में अब तो ना कोई, मरहम भी लगाने वाला है, क्या यही कालचक्र मेरा है..? बांधे अपने बोरी-बिस्तर , निकले है एक सफ़र के लिए, जिसकी शुरुआत तो है पर अंत ना किसी ने जाना है...? उगता सूरज देखे चले हैं, अब तो वो भी ढलने को आया है, बच्चे पूछे बाबा अब ओर कितनी दूर चलना है...? शहर की चका-चौंध से तो किनारा कर आए है, सड़के भी बनी है बेमानी, तोड़े है सिना मेरा, पर ना दम तोड़े ये मेरी जिंदगानी ....! #Labourpain