प्रवास में है सिसकियां !! अतीत के कंपन से.... दहल रहा दिल । बवंडर..... बाहर-भीतर । विस्मय..... इस अंतहीन तलाश की अद्यतन हो..... गूंज तुम ही । तुम ही ... मुस्कान की वजह । पर..... हो एक पहेली प्यार की । बयार उस पार से इस पार संदेश जो लाती फुसफुसाती..... दरम्यां रही वजहों, उम्र, सालों की सब रेत उड़ा दो, अन्यथा ..... एक फूल दिल से आसमां में देना उछाल । और करना महसूस उगते सूरज से डूबते सूरज के मध्य किरणों की बिखरन-सिमटन में जो रंग आ-जा रहे होंगे हमारे दरम्यां रही वजहों, उम्र, सालों के होंगे ।।