देवभूमि उत्तराखंड, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, हे ! देवभूमि हम कैसे करें तेरा गुणगान, इस जग में तेरा मनोरम सौंदर्य ही तेरी पहचान, तुझ मे ही शिव कैलाश विराजे, यहीं शिव लगाते ध्यान, यहीं कर कठोर साधना, ऋषि मुनि पाते सदा परम ज्ञान । तुझ से ही निकले गंगा की निर्मल पावन जल की धारा, जिसमें कर स्नान अपने पापों से मुक्त हो जाता जग सारा, जो भी तेरी शरण में आता,तेरा रूप सौंदर्य उसके मन भा जाता, मिट जाता मन का सारा संताप,होता उसके मन सुखद आभास,। खुल जाते हर व्यक्ति के मन में बंद आस्था के द्वार, जब जाता वो यहां बद्री, केदार और पावन हरिद्वार, धवल हिम चोटियों से होता साक्षात्कार,खूब भाता मुनस्यार, यहीं दिखता आधा संसार,जहां चलती शीतल मन्द बयार । ऊँची ऊँची हिम चोटी,जिनके मध्य सजे हरे भरे बुग्याल, कहीं कलकल कर बहती नदियां,,झरनों का सौंदर्य आपर, मैदानों के खेत खलिहान,करते सदा हमको अन्ना का दान, उत्तराखंड का अनुपम सौंदर्य,जग में करता उसकी पहचान। यहां पर भिन्न भिन्न भाषा बोली,लोग पहने नाना परिधान, अनेक जाति धर्मों का मिला रूप,देता इसको नया स्वरूप, लोग मानते नाना त्यौहार, मेलों की रौनक से छा जाती बहार, तभी तो ये जग में सबको भाता,हर कोई यहां घूमने आता। ©Dayal "दीप, Goswami.. देवभूमि उत्तराखंड