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चला जा रहा है। अंधेरों से , उजालों से निकल एक

चला जा रहा है।  

अंधेरों से , उजालों से निकल 
एक रास्ता चला जा रहा है 
किसी को क्या पता इसका 
कहां रुका , कहां थका बैठा
कैसे ये शाम सा , ढला जा रहा है।  

बारिश से , तुफ़ाओं से निकल 
एक रास्ता चला जा रहा है
लड़ रहा है , झगड़ रहा है सबसे 
किसी को मानता , किसी को हँसता 
अपने गम को बहलाता , चला जा रहा है।  

ना तो तू है , और ना मैं हूँ अब 
ये रास्ता तनहा ही राह पा रहा है 
ज़िंदगी के मुश्किल दौर से गुज़र 
एक मज़िल छोड़कर , दूसरी मज़िल पर 
राह की डोर पकड़ , चला जा रहा है।  

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तनहा शायर हूँ - यश  ३०/१२/२०

©Tanha Shayar hu Yash
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