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कौन बसा है आँखों में मेरी क्यूं इन्हें हर पल किसी

कौन बसा है आँखों में मेरी क्यूं इन्हें हर पल 
किसी का इंतज़ार रहता है, पूछता हूं तो कुछ बताती 
नहीं इन्हें तो बस ढूंढना अपनी खुशी को याद रहता है,
रहती है गुमसुम जब इन्हें मन पसंद ख़्वाब मिलता नहीं, 
प्रवाहिनी बनकर बहती है जब इनका टूटा ख़्वाब 
किसी धागे से सिलता नहीं, कौन बसा है आँखों में 
जिनपर बंधा किसी की गुमनाम मोहोब्बत का सेहरा है, 
रहने लगा है मेरी खुली आँखों में अंधेरा 
जाने कौन मुसाफ़िर आकर इनमें 
अभी अभी बेवक्त ठहरा है....

©Nikhil Kaushik
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