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चाह ....... चाह ----- अभी तो पिघली धातु सा हूँ है

चाह
....... चाह
-----
अभी तो पिघली धातु सा हूँ
है बारी आकार में ढलने की।
अभी तो जुगनू सा हूँ मैं
है चाह सूर्य सा बनने की।।

देखे हैं कुछ स्वप्न जो मैंने
चाह
....... चाह
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अभी तो पिघली धातु सा हूँ
है बारी आकार में ढलने की।
अभी तो जुगनू सा हूँ मैं
है चाह सूर्य सा बनने की।।

देखे हैं कुछ स्वप्न जो मैंने