क्यूँ रो रहा है, ये आंसमा ! क्यूँ सिसक रही है, ये जमीं !! मैं तो केवल एक था,माँ भारती का सर जवां ,तो कयूँ खल रही है, ये कमी ..... न चाहता था जो ,जीते जी मैं मिल गयी वहीं नमीं.... बहाया लहूँ, जो तेरे श्रंगार में न खल रही उसकी कमीं... चाहूँगा यही मैं अगले सौ जनम,मिले यही सर जमीं.... मैं तो केवल एक था तो क्यूँ रही खल रही है, ये कमी. ## वीर योद्धा, एक सैनिक के अपनत्व के कुछ शब्द जो वह माँ भारती का अलंकरण करने के पश्चात, अपनी धरा, अपनी मात्रभूमि की मिट्टी की सौधीं -2 सी खुशबू का अनुभव करके खुद से ही पूछता है !! ...जिसमें रज मात्र भी स्वार्थ नहीं है!!!!