विधा - रोला दिन- मंगलबार सूरज को कहे दीप, दीप को सूर दिखाता। राजनीत में आज, वही नेता कहलाता ।। झण झण बदले रूप, चरण चारण करवाता। झुलसा गये जब खेत ,मुफ्त संसद में खाता।। ले चटख बसन स्वेत ,मखमली बिस्तर सोता। कर के मत का दान,रहे मतदाता रोता।। गठजोड़ों का खेल ,कुर्सी हेतु सब बेचा । नीत नहीं है राज, न्याय धर्म नहीं सोचा।। राजेश गुप्ता "बादल" मुरैना म.प्र. विधा - रोला दिन- मंगलबार सूरज को कहे दीप, दीप को सूर दिखाता। राजनीत में आज, वही नेता कहलाता ।। झण झण बदले रूप, चरण चारण करवाता। झुलसा गये जब खेत ,मुफ्त संसद में खाता।।