खुशियां बिखरी हैं चारों ओर, मन-मोहनी घटा घनघोर । चौमासे की ऋतु है आई, उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।। भूल गए कागज की नौका, मयूर नृत्य,पपीहे का शोर, मोबाइल हाथ में लेकर बैठे । खींचें सेल्फी सारे मोर ।। लुत्फ़ कहाँ वो पॉपकॉर्न में, जो भूंजे भुट्टा में है प्योर । ऑनलाइन ही बाँट रहे हैं, पिज्जा फोटो sending more... आधुनिकता का दौर है फिर भी, ढूंढ़ता हूं, खुशियों की डोर । बचपन की यादों का सावन, फिर मन हो जाए आनंद विभोर ।। -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) खुशियां बिखरी हैं चारों ओर, मन-मोहनी घटा घनघोर । चौमासे की ऋतु है आई, उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।। भूल गए कागज की नौका, मयूर नृत्य,पपीहे का शोर, मोबाइल हाथ में लेकर बैठे ।