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खुशियां बिखरी हैं चारों ओर, मन-मोहनी घटा घनघोर । च

खुशियां बिखरी हैं चारों ओर,
मन-मोहनी घटा घनघोर ।
चौमासे की ऋतु है आई,
उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।।

भूल गए कागज की नौका,
मयूर नृत्य,पपीहे का शोर,
मोबाइल हाथ में लेकर बैठे ।
खींचें सेल्फी सारे मोर ।।

लुत्फ़ कहाँ वो पॉपकॉर्न में,
जो भूंजे भुट्टा में है प्योर ।
ऑनलाइन ही बाँट रहे हैं,
पिज्जा फोटो sending more...

आधुनिकता का दौर है फिर भी,
ढूंढ़ता हूं, खुशियों की डोर ।
बचपन की यादों का सावन,
फिर मन हो जाए आनंद विभोर ।।


-©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) खुशियां बिखरी हैं चारों ओर,
मन-मोहनी घटा घनघोर ।
चौमासे की ऋतु है आई,
उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।।

भूल गए कागज की नौका,
मयूर नृत्य,पपीहे का शोर,
मोबाइल हाथ में लेकर बैठे ।
खुशियां बिखरी हैं चारों ओर,
मन-मोहनी घटा घनघोर ।
चौमासे की ऋतु है आई,
उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।।

भूल गए कागज की नौका,
मयूर नृत्य,पपीहे का शोर,
मोबाइल हाथ में लेकर बैठे ।
खींचें सेल्फी सारे मोर ।।

लुत्फ़ कहाँ वो पॉपकॉर्न में,
जो भूंजे भुट्टा में है प्योर ।
ऑनलाइन ही बाँट रहे हैं,
पिज्जा फोटो sending more...

आधुनिकता का दौर है फिर भी,
ढूंढ़ता हूं, खुशियों की डोर ।
बचपन की यादों का सावन,
फिर मन हो जाए आनंद विभोर ।।


-©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) खुशियां बिखरी हैं चारों ओर,
मन-मोहनी घटा घनघोर ।
चौमासे की ऋतु है आई,
उमंग भरी वर्षा चहुंओर ।।

भूल गए कागज की नौका,
मयूर नृत्य,पपीहे का शोर,
मोबाइल हाथ में लेकर बैठे ।