📚 *“सुविचार"*🖋️ 📘*“3/10/2021”*📝 ✨*“रविवार”*🌟 “मनुष्य” के “शरीर” से जो भी निकालता है वो “सड़” ही जाता है,उससे “दुर्गंध” आती है, एक “जुगुप्सा”(घिनन) को जन्म देती है हमारा “रक्त” हो,“अपशिष्ट” हो,“श्वास” आदि इत्यादि हो, यहां तक कि जब हम “मनुष्य के शरीर” को “त्याग” देते है, तत्पश्चात ही ये “शरीर” “सड़” ही जाता है, इससे “दुर्गंध” ही आती है, बात ये है कि हमारे “वश” में है तो ये ही नहीं ... तो हमारे “वश” में तो है क्या ? हमारे “वश” में तो है “हमारे कर्म”,“हमारा मन्तव्य”,और “हमारी वाणी” यदि इसे “शुभ” रखोगे तो न केवल “स्वयं सुगंधित” रहोगे, बल्कि “समस्त संसार” को “सुगन्धित” कर दोगे, कहा जाता है कि “वाणी” से अधिक “बहुमूल्य” और कुछ नहीं इसलिए जब भी कुछ कहो तो अपने “शब्दों” को अपने “मन” की “तुला” पर तोलो, तत्पश्चात उसका “उपयोग” करो, कभी कभी हो सकता है कि आपके “शब्द” किसी के लिए “आशीर्वाद” बनके बरसे जिससे उसे “शक्ति” प्राप्त हो,“आशीर्वाद” प्राप्त हो, ऐसा भी हो सकता है कि आपके “शब्द” किसी के “ह्रदय” को ऐसी “ठेस” पहुंचा दे कि वो उस से कभी “उभर” ही न पाए, *“अतुल शर्मा”🖋️📝* ©Atul Sharma 📚 *“सुविचार"*🖋️ 📘 *“3/10/2021”*📝 ✨ *“रविवार”*🌟 #“मनुष्य का शरीर” #“दुर्गंध”