नव-पुरातन मन **************** नव अंकुरित युवा जीवन शैली भूला है,देती पुरातन अंकुरित वृद्ध जीवन शैली को, देख न पाते न समझ पाते नीरवता से परिपूर्ण उन निस्वार्थ मन की दुविधा को, ढ़लती साँझ की भाँति एक मन की पुस्तक कहीं न कहीं मायूस सी लगती है, रिश्तों रूपी पुस्तकालय में तन्हा सी पुरातन पुस्तक सी लगती है, नव पुस्तक के निष्ठुर मन से आस कितनी लगती है,मन की पुस्तकालय में पुरातन मन अपवाद को घुटिकता में परिवर्तित कर लेती है,शब्दों से न हो प्रस्तुत स्वंय को मौनता में विलुप्त कर लेते हैं, भावों को अपने नव-मन के संग साझा जो करना चाहते हैं,विचारों की तारतम्य की सटीकता न लाने में असमर्थ वो हो जाते हैं , नव मन की जीवन की शैली की संस्कृति से पुरातन मन की जीवन शैली की संस्कृति प्राय पराजित हो जाती है, देख लेना पढ़कर कभी पुरातन मन की पुस्तक को भी नव मन की पुस्तकालय में तन्हा सी वो पुस्तक लगती है, बुज़ुर्ग हमारा मार्गदर्शक इनके बिन जीवन अधूरा वो हमारा कल थे तो हम उनका आज हैं सम्मान करना उनका हम बच्चों का प्रथम कर्तव्य है, सिर्फ एक दिन का नहीं ये सम्मान जन्म जन्मांतर का सम्मान करने का प्रण तुम भी आज ले लेना, देकर खुशी उनकी चेहरो पर उनका एक नया सवेरा बना