पानी का कोई रंग नहीं,बाकी हैं मन के भेद जिसकी जैसी प्यास है वैसे पानी के हैं रूप अनेक साथ की कोई कीमत नहीं,कदर है असली प्यास वादा तो बहुतेरे कर रहे असली कीमत है विश्वास इस जग है नियम यही,जब- जब बरसा मेघ एक हिस्सा फिर से हरा हुआ,दूजा हिस्सा रह गया सफेद मैं ही मैं को ढूंढ़ रहा,मैं ही हूं मुझसे हैरान मैंने ही ख़ुद को मिटा दिया,मैं ही हूं मेरी पहचान स्वर्ग - नरक अब कुछ नहीं,कहीं मिले न दिल को चैन जब मन जागा तब भोर हुई,जब मन सोया तो हो गई रैन गुज़र जाएगा ये दौर भी, हमेशा टिके न कोई पीर पर्वत सी पीर पिघल गई,निस्तब्ध है गंगा का नीर... © abhishek trehan #पानी #रंग #मन #पीर #manawoawaratha #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqrestzone