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मैं एक लाश के पास खड़ा हूँ जानी पहचानी शायद हमशक़्

मैं एक लाश के
पास खड़ा हूँ 
जानी पहचानी 
शायद हमशक़्ल

बिल्कुल शांत 
ये देखना 
सुकून देता हूं
लाश,
हो जाना 
कितना सुखद होता है

न रह जाती है 
पल पल साँसें 
खोजने की फ़िक्र

न होती है 
ख़्वाहिश दुनिया जीतने की

दुःख सुख 
जैसे सिमट जाते है
पुरानी विरासत की तरह

कोई ख़ोज बची 
नही रहती 
सारा फलशफ़ा 
एक गहरा मौन 
धारण कर लेता है

-अनुराग भरत













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©anurag bharat
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