अनुभूति कई बार वो खुशियां ! अंतस मे उतर जाती है जिन्हें हम सोचे ही नहीं घर से निकलते हुये ! अचानक मौसम का खुशगवार होना ! किसी मंदिर से शंख की मधुर आवाज कानों में उतरना ! मस्जिद से गूंजती अजान ! अनिर्वचनीय सुख से भर देती है ! घर के पीछे खड़े पेड़ो की झुरमट में परिंदो के चहचहाने की आवाज ! किसी डाल पर बैठी कोयल का राग ! संगीत का स्वर देती है ! अनकहे शब्दों से हर प्रश्न का उत्तर देती हैं! बारिशों से तरबतर छत की मुँडेर से निकलते पानी में छपाछप करता बचपन ! तमाम रंगीन स्वप्न लिए झूला झूलता यौवन ! कभी कभी वो काट लेना चिंकोटी ! मुझे तृप्त कर देती है! बस यही सुख पाकर तो जिंदा है हम ! भूल जाता हूँ कि जिंदगी मे है ढेर सारे गम ! संजय श्रीवास्तव अनुभूति