" एक लम्हा इन्तजार का आज भी जायज हैं , मुलाकात मुकम्मल हो ना सही कभी , तु हैं कहीं मैं हूं कहीं इस बिनाई में , हमारी बेज़ारीया बदस्तूर मुकम्मल हो रही हैं . " --- रबिन्द्र राम Pic: pexels.com " एक लम्हा इन्तजार का आज भी जायज हैं , मुलाकात मुकम्मल हो ना सही कभी , तु हैं कहीं मैं हूं कहीं इस बिनाई में , हमारी बेज़ारीया बदस्तूर मुकम्मल हो रही हैं . " --- रबिन्द्र राम