लाईन में लगकर स्कूल में आधी छुट्टी में खाना, खाना उस दिन भी बचाकर रखा था खाना मैने थाली में, छात्राओं की लंबी कतार देखकर। अभी अध भरा पेट ही था मेरा उसने देखा और कहा तूने खा लिया नहीं बचाकर रखा है आधा तू ले ले मैंने कहा उससे देखकर। नहीं उसने कहा चल चोर सिपाही खेलते हैं क्या! अचरज से हम साथ खेलने वाले हैं लड़के सिपाही बनेंगे और लड़कियां..... ये अंतिम निर्णय था उसका मैं अंत में छुपने वाली हूं सभी को छुपाकर। मैंने सोचा उसको मैं नहीं पकड़ूंगा मुझे मालूम तो था वो कहां छूटने वाली है नीम की टहनी जो खंडहर हुई स्कूल बिल्डिंग से सटी रहती थी उस पर चढ़कर बैठ जाना हमेशा चाहती थी एकाधिकार था उसका उस पर जो रखती थी बचाकर। दूसरों को पकड़ते हुए कई बार देखते हुए अनदेखा किया उसको अनदेखा करना मालूम था उसको मुसकुराये थे इस दौरान हम कई दफा हमेशा खेल में हार जाती थी उसकी मुस्कान मैं और बढ़ा देना चाहता था स्कूल की घंटी बजने के साथ ही ये तय हो चुका था उसको जिताकर। मुझे क्या मिलने वाला है बदलें में मेरा प्रश्नचिन्ह था कल घर में शादी के लड्डू आने है उसका प्रत्युत्तर था,मतलब परसों इस पर दोनों मुस्करा दिए, अगले दिन फिर हम कतार में थे उसने आवाज़ दी सिपाही - चल हम साथ में खाते हैं लड्डू जो रखें हैं मैंने बचाकर। अगली बार भी मैंने उसे हारने नहीं दिया इस बार हमने ठंडी-ठंडी 'चुसकी' पीया अगली दफा लड़कियों के खेमे से आई आवाज़ सुनकर मैं चौंका- 'ऐ- सुन तो- चोर- सिपाही वाली लड़की' अब चोरनी छुपती नहीं थी मुझे देखकर। ©Kumar Deep Bodhi चोर पुलिस वाली लड़की #Rose