ज़ाहिर है... मेरी यादें बोहोत रुलाएँगी; रातें अधूरी ज़रूर होंगी, पर धुँध सा कहीं कर जाएँगी; यादें पुरानी उन लम्हों की, एक अधूरा सा ख़्वाब दिखाएँगी; कोशिश होगी उन ख़्वाबों को गले से लगाने की, पर मुक़मल न वो ख्वाहिशें हो पाएँगी; मांगूँगा ख़ुदा से एक दिन की मौहलत मैं भी, ज़िन्दगी जो इस क़दर मुझपे कभी मुस्कुराएगी; हो सकता है उस दिन भी पलकें भीग जाएँ मेरी, मगर दिल-ए-दास्ताँ हमेशा मेरी रह जाएगी; उस दिन भी चाहत होगी तुम्हारे मुस्कुराहट की, बेशक़ साँसें जो मेरी कहीं थम जाएँगी।। दिल-ए-दास्ताँ