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ज़ाहिर है... मेरी यादें बोहोत रुलाएँगी; रातें अधूरी

ज़ाहिर है...
मेरी यादें बोहोत रुलाएँगी;
रातें अधूरी ज़रूर होंगी,
पर धुँध सा कहीं कर जाएँगी;
यादें पुरानी उन लम्हों की,
एक अधूरा सा ख़्वाब दिखाएँगी;
कोशिश होगी उन ख़्वाबों को गले से लगाने की,
पर मुक़मल न वो ख्वाहिशें हो पाएँगी;
मांगूँगा ख़ुदा से एक दिन की मौहलत मैं भी,
ज़िन्दगी जो इस क़दर मुझपे कभी मुस्कुराएगी;
हो सकता है उस दिन भी पलकें भीग जाएँ मेरी,
मगर दिल-ए-दास्ताँ हमेशा मेरी रह जाएगी;
उस दिन भी चाहत होगी तुम्हारे मुस्कुराहट की,
बेशक़ साँसें जो मेरी कहीं थम जाएँगी।।

दिल-ए-दास्ताँ
ज़ाहिर है...
मेरी यादें बोहोत रुलाएँगी;
रातें अधूरी ज़रूर होंगी,
पर धुँध सा कहीं कर जाएँगी;
यादें पुरानी उन लम्हों की,
एक अधूरा सा ख़्वाब दिखाएँगी;
कोशिश होगी उन ख़्वाबों को गले से लगाने की,
पर मुक़मल न वो ख्वाहिशें हो पाएँगी;
मांगूँगा ख़ुदा से एक दिन की मौहलत मैं भी,
ज़िन्दगी जो इस क़दर मुझपे कभी मुस्कुराएगी;
हो सकता है उस दिन भी पलकें भीग जाएँ मेरी,
मगर दिल-ए-दास्ताँ हमेशा मेरी रह जाएगी;
उस दिन भी चाहत होगी तुम्हारे मुस्कुराहट की,
बेशक़ साँसें जो मेरी कहीं थम जाएँगी।।

दिल-ए-दास्ताँ