निसबतें जो रखके भूला दी जाती हैं किसी किताब में मिल जाती हैं यूँही अक़्सर मगर सूखे गुलाब की तरह न तो पहले से शोख़ रंग, न ख़ुश्बू ,न अंदाज़ दिल लुभाने वाले वो हमनवा कलके मेरे हाल पूछते हैं आज ग़ैरों की तरह Musings 14/10/19