अंतर्मन से देख रहा सब चले राह निर्बाध, लिए हाथ में छड़ी निरंतर मंज़िल की ले थाह, अपनी धुन में रहता जीवन में भरता उत्साह, कौन कहाँ क्या करता इससे उसे नहीं परवाह, सदा हौसले और हिम्मत से दूर हटे कठिनाई, सच ही कहा किसी ने जग में जहाँ चाह वहाँ राह, कर्म करो पर रहो अकर्मक गीता का उपदेश, ऐसी करनी कर चलो जगत से दुनिया बोले वाह, धारण करो धर्म को जीवन अपना सफल बनाओ, पूरी करो जरूरत सारी इतर न रक्खो चाह, करो चाकरी प्रभु की बंधनमुक्त जिओ इस जग में, छोड़ गुलामी माया की जीना बनके तुम शाह, मन के बहकावे में आकर करते लोग गुनाह, जिओ संयमित जीवन 'गुंजन' बनोगे बेपरवाह, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #मंज़िल की ले थाह#