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सोचता हूं यह सदा शाम सवेरे देख जमाना ना मानस बिगड़

सोचता हूं यह सदा शाम सवेरे
देख जमाना ना मानस बिगड़े
लोक हित में मेरा जीवन सुधरें ‌।
ऐसे विचार सब दिल में उपजे।

©Balwant Mehta
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