"तुम्हारे हिस्से की चाय" तुम्हारे हिस्से की चाय अब मैं ही पी लेता हूँ। अब तुमसे न बात होती है, ना चाय पर मुलाकात होती है। पर हाँ,तुम्हारे हिस्से की चाय तो अब भी बनती है। यूं तन से तो तुम दूर हो सकते हो लेकिन मन से दूर होना इतना आसान थोड़े हैं। प्रेम में कुछ अनबन हो सकती है लेकिन दूर होना ही तो केवल उसका हल नहीं है हिज्र में हश्र क्या होता है? तुम कहाँ समझ पाए हो इसको तुमको तो बस गलतियाँ निकालना आता है। चाय पर तुम तो नहीं होते हो मेरे साथ लेकिन तुम्हारे हिस्से की चाय आज भी टेबल पर होती है, और तुम्हारे गुलाबी होठों से छूने का इंतजार करती है। हाँ, मुझे लगता है कभी इंतजार खत्म होगा, फिलहाल तो तुम्हारे हिस्से की चाय अब मैं ही पी लेता हूँ...।। ©OM Prakash Lovevanshi "Sangam" #sangam_kota #sangam_banna #ओम_प्रकाश_लववंशी_संगम #still