यहां बिगाड़ने में सब माहिर है, संवारना कोई नहीं चाहता। सब चाहते है फैसला उनके हक में आए, सिक्का उछालना कोई नहीं चाहता। वो चाहते है हर पल मुस्कुराए हम उनसे, बस हमसे मुस्कुराना, कोई नहीं चाहता। आज वो नन्हा पौधा भी सिसक के रो दिया "मृदुल", फल सबको चाहिए, पानी डालना कोई चाहता। ©Manoj kr Mridul Yaduwanshi पानी डालना कोई नहीं चाहता।