प्रेम अक्सर झंकृत........... होता है तड़के भोर में किंवाड़ के सांकल से पैरों के रुनझुन,,,,,,,,, करते पदचाप जिनका बार-बार अनुभूति कराते हैं! चूड़ियों की खनक....... के शोर को बर्तनों ने जरा मंद...... कर दिया है, गैस के आँच........ पर जो पक रहा वह मेरे प्रति कहीं प्रेम..... ही तो है! कपड़ों के बेवज़ह मैल से भी अधिक कभी- कभार भीतर का मैल..... भी चिपक जाता है रिश्तो में,,,,,,, आकर ऑफिस की खिन्नता ले बैठ जाती है! ये प्रेम घुमड़ते बातों की लरजिशों में बच्चों के अनगढ़..खिलखिलाहटों में मंदिर की असंख्य घंटियों के ध्वनि में असहाय वेदना.. में उमड़ता रहता है! भावों के निश्चल मृदुल जल से सहज अभिसिंचित.... करते रहते हैं प्रेम को सच है ये खून ठंडा.......... पड़ता है जब झुर्रियों के........पड़ाव में आकर एक अलग ही तरह का प्रेम पगता है! अम्मा को देखा है सदैव उस मुरत में सहचरी भी उसी राह पर है........... जिसका सूत्रपात कभी नींव ने किया दालान में बैठा बस खुश हो लेता हूं! नींव के सानिध्य में भविष्य......जो संवरता है प्रेम इन दीवारों में अब ..........भी महकता है दीवारों को खुश हो हँसता... हुआ देखा है मैंने गाढ़ी कमाई का ये प्रेम खंडहर नहीं हो सकता! यह अजर अमर है धुंधलाई.... तस्वीरों में भी ©kumar ramesh rahi #प्रेम #एहसास #मेरीभावनाएँ #जीवन #दीवारों #खंडहर #अजरअमर #kumarrameshrahi #withyou