बांसुरी मैं भला कैसे कहूँ इतने निकट मेरे रहो श्वास जो मेरी रहीं हैं उनका स्वर बनके बहो मैं कहाँ से ढ़ूढ लाऊं साहसों की सीढ़ियां जिन पे चढ़ के जान पाऊँ सुर बसे तुम में कहाँ ईष्ट के तुम मुंहलगी हो मुझसे कैसे साम्य हो तुम अधर की शान ठहरीं मैं चरनरज भी कहाँ बांसुरी तुम कृष्ण की हर श्वास का निः श्वास हो मैं बड़ी अदना सी राधा तुमसी कैसे खास हूँ? ऋचा खरे स्वरचित बांसुरी