##आकाश गंगा## **असंख्य तारों और ग्रहों को प्रकाशमान करती है ये आकाश गंगा, रहस्यों को समेटे रहती है खुद में ये आकाशगंगा, लगता है ये है पहरेदार है ऊपर स्वर्गलोक की, किसी की नहीं है मज़ाल जो कर जाये पार आकाशगंगा | लगा है मनुष्य इसके रहस्यों को खोजने अपनी बुद्धि के सिमित दायरे से, ये कोई छोटा सा नहीं है सवाल ये है आकाशगंगा | हमसब पृथ्वी पर आँखों की परिधि में जो कुछ देख पाते हैं, हमारी आँखों में नहीं है इतनी ताकत जो नाप ले आकाशगंगा |कपोल कल्पित कल्पना तो लिखी जाती रहेगी, किसी की लेखनी में भी कहां है इतना दम जो लिख सके आकाशगंगा , ये विषय है विस्तार का , कैसे लिखुं मैं तुम्हें आकाशगंगा? नाज की मेधा नहीं है प्रखर जो लिख सके तेरे कण मात्र का विवरण, क्योंकि तुम तो हो अनंत विस्तृत आकाशगंगा**..!!NAJ📝