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एक वो ही नहीं अपनों में जो अपना ना हुआ एक दिल भी ह

एक वो ही नहीं अपनों में जो अपना ना हुआ
एक दिल भी है मेरे पास जो अपना ना हुआ

कैसे उम्मीद लगाऊं मैं खाबों से जिनका
कभी खाबों में हकीकत से सामना ना हुआ

दर्द अपने थे हर एक मोड़ पे जो साथ चले
खुशियाँ अंजान देखती रही चलना ना हुआ

साथ जो तेल का पानी से वही उनसे मेरा
रोज मिलते रहे लेकिन कभी मिलना ना हुआ

दिल-ए-सय्याद था वो या दिल-ए-ना-कदरदाँ
क्या पता उनकी निगाहों से सामना ना हुआ #सामना
एक वो ही नहीं अपनों में जो अपना ना हुआ
एक दिल भी है मेरे पास जो अपना ना हुआ

कैसे उम्मीद लगाऊं मैं खाबों से जिनका
कभी खाबों में हकीकत से सामना ना हुआ

दर्द अपने थे हर एक मोड़ पे जो साथ चले
खुशियाँ अंजान देखती रही चलना ना हुआ

साथ जो तेल का पानी से वही उनसे मेरा
रोज मिलते रहे लेकिन कभी मिलना ना हुआ

दिल-ए-सय्याद था वो या दिल-ए-ना-कदरदाँ
क्या पता उनकी निगाहों से सामना ना हुआ #सामना
jasrana4801

JASRANA

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