"दिली परिंदे की दिल से चहचहाट" जिनके रिश्ते ताउम्र आपसी मदभेद में उलझते थे कभी अब गुनहगार उसे बना दिया राजनीति का ये खेल, रिश्तों में भी होता है आवाज़ गूँज रही थी घर में सबके हँसी ठहाके की वो अपने घर में ही तन्हा रह गया अलग थलग करने का ये खेल, रिश्तों में भी होता है गैर उसे बनाके सब एक होते चले गये पक्षपात का ये खेल, रिश्तों में भी होता है 🍁विकास कुमार🍁 "दिली परिंदे की दिल से चहचहाट"