अपनी शम्त मुझ तक फैलाओ किसी दिन बनकर बारिश मुझ पर बरस जाओ किसी दिन मैं रोज शाम थककर जो घर को लौटूं बनकर चाय मेरी थकान मिटाओ किसी दिन मैं हर्फ़ दर हर्फ़ बस तुमको तुमपर लिखूं मेरी डायरी का पन्ना बन जाओ किसी दिन ये तारे झूठे जो टूटे ओर गिरते रहे कहीँ पर बनकर ख़्वाब हकीकत में आओ किसी दिन ये जो तुमको ही तलाशती रहती मेरी आँखे तुम्हारा आईना है,इन्हें आकर ले जाओ किसी दिन मेरी ज़िंदगी बिसात पर बिछी Ludo की माफ़िक तुम खिलाड़ी हो, खेलने ही आ जाओ किसी दिन ये दिल जो दुबका छिपा हिरण-सा बैठा है भीतर तुम शिकारी हो, शिकार करने ही आजाओ किस दिन घनघोर मातम पसरा है दिल में, मर गई शायद रूह मेरी, कमाल तुम्हारा है, तुम्हीं आओ ये जनाजा उठाएं किसी दिन... #भरत गौतम #gazal #kisidin