Nojoto: Largest Storytelling Platform

समझ नहीं आता किस जहां हूं, यहां का हूं या वहां का

समझ नहीं आता किस जहां हूं,
यहां का हूं या वहां का हूं।

वहशत नोचती है रूह को,
एक जख्मी परिंदा आसमां का हूं।

इनायत - ए - नज़र हो एक बार उसकी,
मैं तलबगार उसकी निगाह का हूं।
दलदल में डूब जाती है किश्तियां जो,
मै नाविक ऐसी नाव का हूं।

जिस पर पैर रख लोग है बढ़ते,
मैं ईट उस पायदान का हूं।
है जिसे समझ ना पाते लोग,
सुखन फहम उस दास्तां का हूं।

ठुकराया जाता हूं हर बार ही,
मै शायर बड़ा बदनाम सा हूं।

सुखन फहम -रचनाकार असमंजस
समझ नहीं आता किस जहां हूं,
यहां का हूं या वहां का हूं।

वहशत नोचती है रूह को,
एक जख्मी परिंदा आसमां का हूं।

इनायत - ए - नज़र हो एक बार उसकी,
मैं तलबगार उसकी निगाह का हूं।
दलदल में डूब जाती है किश्तियां जो,
मै नाविक ऐसी नाव का हूं।

जिस पर पैर रख लोग है बढ़ते,
मैं ईट उस पायदान का हूं।
है जिसे समझ ना पाते लोग,
सुखन फहम उस दास्तां का हूं।

ठुकराया जाता हूं हर बार ही,
मै शायर बड़ा बदनाम सा हूं।

सुखन फहम -रचनाकार असमंजस