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रोटी के टुकड़ों में उलझी सी लगती है जिंदगी तो बस बच

रोटी के टुकड़ों में उलझी सी लगती है
जिंदगी तो बस बचपन की अच्छी लगती है।

बढ़ती है उम्र तो जिम्मेदारियां नयी मिलती है
किताबें छूट जाती है तब लोगों से सीख मिलती है।

 लोगों से रोज नये मशवरे,बिन मांगी नयी सलाह मिलती है।
कौन बताये की  उनकी सलाह हमारी परिस्थियों से नहीं मिलती है।

कोई अपना नहीं यहाँ रिश्तों को इज्जत भी स्वार्थ से मिलती है।
परख लेना तुम वक़्त आने पर अपनों को भी
स्वार्थ होगा जहाँ वही दुनिया झुकी मिलती है।

रोटी के टुकड़ों में उलझी सी लगती है
जिंदगी तो बस बचपन की अच्छी लगती है।
 #shridada #sakshiraghav #life #roti
रोटी के टुकड़ों में उलझी सी लगती है
जिंदगी तो बस बचपन की अच्छी लगती है।

बढ़ती है उम्र तो जिम्मेदारियां नयी मिलती है
किताबें छूट जाती है तब लोगों से सीख मिलती है।

 लोगों से रोज नये मशवरे,बिन मांगी नयी सलाह मिलती है।
कौन बताये की  उनकी सलाह हमारी परिस्थियों से नहीं मिलती है।

कोई अपना नहीं यहाँ रिश्तों को इज्जत भी स्वार्थ से मिलती है।
परख लेना तुम वक़्त आने पर अपनों को भी
स्वार्थ होगा जहाँ वही दुनिया झुकी मिलती है।

रोटी के टुकड़ों में उलझी सी लगती है
जिंदगी तो बस बचपन की अच्छी लगती है।
 #shridada #sakshiraghav #life #roti