उन दिनों में समझता नही था दिल की बातों को। शायद ना समझ सा था मैं। समझ ना सका तेरे अंदर के जज़्बातों को । यूँ जो बाते हुई रातों को वो मुझे याद है। वो तेरी प्यारी सी हंसी ,दिलकश अंदाज़। पर कई बार अनदेखा किया मैंने तेरी इज़्ज़ातो को। एक तड़पन सी थी।और एक डर सा था। वैसे भुला नही तेरा देर तक जागना रातो को। समय निकलता रहा तेरा वो प्यार,तेरी वो जवानी का मर्म निकलता रहा। कैसा बुद्धु सा था सुनकर भी अनसुना करता रहा मैं। तेरी आह भरी आदतों को। उन दिनों मै समझता नही था दिल की बातों को। शायद ना समझ सा था मैं। समझ ना सका तेरे अंदर के जज़्बातों को । काफी वक़्त गुज़र गया पर तू कहां में कहां। में तन्हाइयो में तंन्हा,तू जवानी में जैसे बेजां। मै सोचता हूं एक बार फिर से सोचना। जीले फिर से वो लम्हे जो वक़्त दिया गवां। छोड़ ना यार क्या लिखूं अब, मैं समझा तू समझे न जब। पर शायद वक़्त भी पार कर गया हैं इबादतों को। उन दिनों में समझता नही था दिल की बातों को। शायद ना समझ सा था मैं। समझ ना सका तेरे अंदर के जज़्बातों को । लोकेश पाल #Lokeshpal #shabdkarita उन दिनों में समझता नही था दिल की बातों को। शायद ना समझ सा था मैं। समझ ना सका तेरे अंदर के जज़्बातों को । यूँ जो बाते हुई रातों को वो मुझे याद है।