Nojoto: Largest Storytelling Platform

ज़ख़्म दिलों के कम होते नज़र नहीं आते, कुरेद कर अपने

 ज़ख़्म दिलों के कम होते नज़र नहीं आते,
कुरेद कर अपने ही न जाने क्या हैं चाहते..!

बह रही हैं आँखें और तड़प रही है रूह भी,
तन बदन में बोल कड़वे अपनों के हैं आग लगाते..!

भस्म हो रहे हैं अरमान कब तक रहें इन्हें छुपाते,
थक गए हैं हम एकतरफा प्यार निभाते निभाते..!

गुज़र रही है ज़िन्दगी रोते हुए उनकी वजह से,
जिनके लिए लिखते थे लेखों में इश्क़ की बातें..!

दिन चुभ रहे हैं सूरज की तेज़ किरणों की तरह,
और करवटें बदल बदल कर कट रही हैं रातें..!

वो हो गया परिंदा दिल में रहना वाला आज़ाद पंछी,
अब तसल्ली देते हैं ख़ुद को और ख़ुद को हैं समझाते..!

©SHIVA KANT
  #jakhmedil