देवों ने सुध बुध खोई है, दानव दल फिर भारी है। जहाँ युद्ध छोड़ा था तुमने, जंग वहीं से जारी है। रक्तबीज थे दानव शायद फिर से उठ कर खड़े हुए। तुम्हें लगा सब शांत हो गया मगर हादसे बड़े हुए। कही बच्चियों की चीखें हैं, और कहीं जलती नारी। जाने किसको कोस रही है, पापी दुनिया हत्यारी। एक बार फिर से जगदम्बे, भक्तों का उद्धार करो। बहुत सह चुके रण चण्डी अब चण्ड मुण्ड संघार करो। आज हिमालय पर्वत भी गँगा पर आँख उठाता है नरभक्षी भँवरा कलियों को नोच नोच कर खाता है पांचाली की लाज़ बचाने कोई कृष्ण नही आता धृतराष्ट्र सा लोकतंत्र है कुछ भी देख नही पाता नवरात्रि की कन्याओं पर घात लगाते हैं दानव आस तुम्हीं से है माँ दुर्गे त्राहि त्राहि करते मानव एक बार फिर दानव दल में माता हाहाकार करो बहुत सह चुके रण चण्डी अब चण्ड मुण्ड संघार करो। -अमूल्य मिश्रा जय माता दी