सुनी पड़ गयी थी गलियां शहर की, कतारें लगी, मयखानों के खुलते ही, गरीब का रोना, ना खुलवा पाया जो दरवाज़े, मदिरा क्या थिरकी, खुल गए सब आशियाने!! चिल्लाता रहा पीड़ित प्रवाशी, था जब मदिरा में चूर, शहर का वासी, क्या करे रुक कर वो ऐसे बेगाने शहर में, जहाँ खुलते हैं दरवाज़े मयखानों की तर्ज पर!! रोहित सिंह गुलिया #Lockdown_3